-महेश देवनानी
राम कसम, हैदराबाद वाले भाईजान की बात सुनकर तो मुझे मेरा बचपन याद आ गया। बचपन में मैं भी बड़ा विद्रोही था। जो काम करने के लिए बोलो वो नहीं करता था और जो ना करने के लिए बोलो वो जरूर करता था। मेरी माँ कहती थी - ये तो पैदा भी उल्टा ही हुआ था - पढाई करने को बोलो तो कहेगा खेलने जाना है, और कभी कहो कि बाहर जाकर खेल ताकि घर का काम कर लूँ तो कहेगा आज तो होमवर्क बहुत है, पढाई करनी है। तो मित्रों हो सकता है कि अपने भाईजान की भी 'ब्रीच' डिलीवरी हुई हो।
वैसे इंसान की प्रवृत्ति है कि जोर जबरदस्ती से कोई काम नहीं करता, प्यार मुहब्बत से जान भी मांग लो तो ख़ुशी-२ हाजिर कर देगा। बड़े बुजुर्ग फरमाते है कि दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं जो प्रेम से नहीं हो सकता, फिर भी न जाने क्यों भाईलोग हर समस्या को लट्ठ लेकर सुलझाना चाहते हैं? कभी किसी ट्रैफिक पुलिस वाले ने आपकी गाड़ी साइड पे लगवाई हो तो आप भली भाँति जानते हैं कि 'प्रेम व्यवहार' तथा 'नियम कायदों के भाषण' में से कौनसा तरीका काम आता है।
कल गली के नुक्कड़ पे समझदार बता रहे थे कि मूर्खों 'भारत माता की जय' और 'हिंदुस्तान ज़िंदाबाद' दोनों एक ही बात हैं। ये उसी तरह है जैसे कान को इधर से पकड़ो या उधर से। मगर कुछ लकीर के फकीर समझ कर भी नहीं समझना चाहते। वो चाहते हैं कि इस आज़ाद हिन्दुस्तान में सभी लोग वही बोलें जो वो चाहते हैं, वही खाएं जो वो चाहते हैं, वही पहने जो वो चाहते हैं। और जो ऐसा नहीं करते वो पड़ोसी मुल्क चले जाएँ। अब इन भले लोगों को कोई बताये कि भारत माता के दीवानों और मादरे वतन पर मर मिटने वालों के जज्बों में कोई बुनियादी फर्क नहीं है।
इस पूरे बखेड़े के बीच कुछ अतिज्ञानवान लोग तो भारत को स्त्रीलिंग (माता) बताने को भी ठीक नहीं समझते। उनका मानना है कि मातृभूमि भले ही स्त्रीलिंग हो परन्तु भारत शब्द तो पुर्लिंग ही है - क्या आप किसी भारत नाम की महिला को जानते हैं? चलो जी अब हम क्यों इस व्याकरण के पचड़े में पड़े। हम तो बस इतनी ही दुआ करते हैं कि ऊपर वाला इन देशप्रेमी दीवानों को थोड़ी सद्-बुद्धि दे। आमीन !!!
राम कसम, हैदराबाद वाले भाईजान की बात सुनकर तो मुझे मेरा बचपन याद आ गया। बचपन में मैं भी बड़ा विद्रोही था। जो काम करने के लिए बोलो वो नहीं करता था और जो ना करने के लिए बोलो वो जरूर करता था। मेरी माँ कहती थी - ये तो पैदा भी उल्टा ही हुआ था - पढाई करने को बोलो तो कहेगा खेलने जाना है, और कभी कहो कि बाहर जाकर खेल ताकि घर का काम कर लूँ तो कहेगा आज तो होमवर्क बहुत है, पढाई करनी है। तो मित्रों हो सकता है कि अपने भाईजान की भी 'ब्रीच' डिलीवरी हुई हो।
वैसे इंसान की प्रवृत्ति है कि जोर जबरदस्ती से कोई काम नहीं करता, प्यार मुहब्बत से जान भी मांग लो तो ख़ुशी-२ हाजिर कर देगा। बड़े बुजुर्ग फरमाते है कि दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं जो प्रेम से नहीं हो सकता, फिर भी न जाने क्यों भाईलोग हर समस्या को लट्ठ लेकर सुलझाना चाहते हैं? कभी किसी ट्रैफिक पुलिस वाले ने आपकी गाड़ी साइड पे लगवाई हो तो आप भली भाँति जानते हैं कि 'प्रेम व्यवहार' तथा 'नियम कायदों के भाषण' में से कौनसा तरीका काम आता है।
कल गली के नुक्कड़ पे समझदार बता रहे थे कि मूर्खों 'भारत माता की जय' और 'हिंदुस्तान ज़िंदाबाद' दोनों एक ही बात हैं। ये उसी तरह है जैसे कान को इधर से पकड़ो या उधर से। मगर कुछ लकीर के फकीर समझ कर भी नहीं समझना चाहते। वो चाहते हैं कि इस आज़ाद हिन्दुस्तान में सभी लोग वही बोलें जो वो चाहते हैं, वही खाएं जो वो चाहते हैं, वही पहने जो वो चाहते हैं। और जो ऐसा नहीं करते वो पड़ोसी मुल्क चले जाएँ। अब इन भले लोगों को कोई बताये कि भारत माता के दीवानों और मादरे वतन पर मर मिटने वालों के जज्बों में कोई बुनियादी फर्क नहीं है।
इस पूरे बखेड़े के बीच कुछ अतिज्ञानवान लोग तो भारत को स्त्रीलिंग (माता) बताने को भी ठीक नहीं समझते। उनका मानना है कि मातृभूमि भले ही स्त्रीलिंग हो परन्तु भारत शब्द तो पुर्लिंग ही है - क्या आप किसी भारत नाम की महिला को जानते हैं? चलो जी अब हम क्यों इस व्याकरण के पचड़े में पड़े। हम तो बस इतनी ही दुआ करते हैं कि ऊपर वाला इन देशप्रेमी दीवानों को थोड़ी सद्-बुद्धि दे। आमीन !!!
Aameen!
ReplyDeleteMoral of the story: Bharat Ki Jai!! = Bharat Mata Ki Jai!! = Hindustan Jindabad!!=Jai Hind!!
ReplyDeleteWell said Sanjeev ji!!!
Delete