Saturday, 19 March 2016

नेताजी की चेतावनी

-महेश देवनानी

कल शाम को हमारे पड़ोसी जस्सी जी टकरा गए। जस्सी जी यूँ तो बड़े सज्जन एवं भद्र पुरूष हैं मगर अपने घर का कचरा पडोसी के घर के सामने डालने की कला में इन्हें महारथ हासिल है। बड़े ही ज्ञानी हैं, देश-विदेश की ख़बरों के साथ-२ मुहल्ले के लड़के-लड़कियों की हर 'एक्टिविटी' पर भी इनकी पैनी निगाह रहती है।

मैने दुआ सलाम कर पूछा -'किधर चल दिए जस्सी जी?', तो बोले ग्रोसरी लेने जा रहा हूँ। एक जमाना था जब लोग किराना लेने जाते थे, आजकल ग्रोसरी लेने जाते हैं। वैश्वीकरण का इस देश पर कुछ और प्रभाव पड़ा हो या नहीं परन्तु भाषा का स्तर अवश्य ही उन्नत हुआ है। हमारे पड़ोसी गुप्ता जी ने भी अपनी खानदानी दुकान का नाम 'छगनलाल रेवाचंद किराणा स्टोर' से बदल कर 'आल इन वन ग्रोसरी' रख लिया है। इससे उनके धंधे मे बढ़ोतरी हुई या नहीं यह तो वे ही जाने, पर सुनते हैं कि अब उनके बेटे को बाप की दुकान का नाम स्कूल में बताने में शर्म महसूस नहीं होती।

जस्सी जी को कुछ उदास देख मैने पूछा 'सब खैरियत से तो है?' तो उन्होंने मुझे ऐसे घूरा जैसे ऋतिक आजकल कंगना का नाम लेने वालों को घूरता है। बोले - 'किस दुनिया में रहते हैं आप, कुछ मालूम भी है क्या होने वाला है?' मैने कहा -'एडवाइजर साब तो चले गए तो कार-फ्री डे तो होगा नहीं, और क्या होने वाला था?' मेरा इतना कहना था कि उन्होंने अपना सिर ऐसे पीटा जैसे एक बाप अपने निकम्मे बेटे का जवाब सुनकर पीटता है। बोले -'नेताजी ने चेतावनी दी है कि यदि उन्हें उम्मीदवार नहीं चुना गया तो दंगे भी हो सकते हैं।' यह सुन मुझे अपने आप से बड़ी ग्लानि महसूस हुई, धिक्कार है अगर मैं ऐसी महान चेतावनी देने वाले साहसी नेताजी की निर्मल वाणी से अब तक वंचित हूँ। फिर भी अपने आप को सँभालते हुए मैने पूछा-'ऐसी दिव्य भविष्यवाणी किस महापुरूष ने की है, कहाँ हो रहे हैं चुनाव?' तो बोले -'श्री ट्रम्प जी ने कहा है, अमेरिका के संभावित राष्ट्रपति।'

खुदा की कसम गुस्सा तो बहुत आया मुझे पर संयत होकर मैने कहा -'जस्सी जी इससे हमें क्या फर्क पड़ता है?' जस्सी जी कुछ देर तो मौन रहे, फिर एक गहरी साँस ली और बोले -'ठीक ही कहते हैं आप, अगर अमेरिका में दंगा होता है तो इससे हमें क्या फर्क पड़ता है? फर्क तो हमें अपने देश में दंगा होने पर भी नहीं पड़ता। सियासत की बिसात पर बादशाहों और उनके वज़ीरों की हुकूमतों की जंग में हम तो बस प्यादे हैं जो मजहब और नफरत की आग में झोंक दिए जाते हैं। हिन्दू का घर जले या मुसलमान का, रोती तो मानवता ही है। पर चलो आप ठीक ही कहते हो....' कहते कहते उनकी आवाज भर आई और वो अपना झोला उठाकर चले गए। मैं चुपचाप निस्तब्ध सा उन्हें जाते हुए देखता रहा।

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