-महेश देवनानी
आज सुबह-सुबह
जस्सी जी हमारे घर आ धमके। मैंने चाय का प्याला हाथ में थमाया ही था कि बोले -'गलती
हमारी ही थी, हम ही मूर्ख थे जो इतनी ज्यादा उम्मीदें लगा बैठे थे। हमें मालूम होना
चाहिए था कि जिंदगी, इंसान और मुहब्बत तो बेवफा हैं।' मैंने भी चुटकी लेते हुए कहा
-'जस्सी जी, कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी, यूँ कोई बेवफा नहीं होता।' तो मुझे देखकर
मुस्कुराये और चाय की चुस्की खेंच कर बोले -'डॉक्टर साब लगता है कोई पर्सनल एक्सपीरियंस
है आपको, चोट गहरी लगती है।' और ठहाका मार कर हँस पड़े।
मैंने भी हँसते हुए पूछा -'भाभी जी को तो नहीं खबर आपके इस चक्कर के बारे में?' तो बोले 'वो सब जानती
है, मुझसे ज्यादा दुखी तो वही है। कल से मूड ऑफ है, कहती है क्या फायदा ऐसे अंधे-प्रेम
का?' मैंने बिस्कुट आगे करते हुए कहा 'अब पहेलियाँ मत बुझाइए, सीधे-सीधे बताइये हुआ
क्या?' बोले 'सुना आपने प्रधानमंत्री जी ने क्या कहा? आरक्षण को जारी रखेंगे। खरोंच भी ना आने देंगे।' मैंने
कहा 'तो इसमें नया क्या है? ये तो सबको पता ही है। इस देश में किसी भी राजनेता या पार्टी
में इतनी इच्छाशक्ति नहीं है कि आरक्षण पर ईमानदारी से बात भी कर सके, सुधार
तो दूर की बात है।' यह सुन जस्सी जी बोले 'आपकी यही बात मुझे अच्छी लगती है, आप दिमाग
से सोचते हो और मैं दिल से। जब से १० लाख से ज्यादा आमदनी वालों की रसोई गैस की सब्सिडी
बंद हुई थी मैं तो आस लगाये बैठा था कि अब ऐसा ही कुछ आरक्षण में भी होगा। नागपुर से
भी कुछ ऐसे ही संकेत आ रहे थे। मगर हाय रे राजनैतिक मजबूरी, सारे अरमानों पर पानी फेर
दिया। उस पर सरकार के एक मंत्री तो निजी क्षेत्र में भी आरक्षण की बात कर रहे हैं।'
मैंने कहा
'छोड़ो जस्सी जी आप क्यों चिंता करते हो? अपना चिंटू तो लाखों में एक है। सुना है इस
बार भी क्लास में टॉप किया है।' बोले 'मुझे अपने चिंटू की चिंता नहीं है। मुझे तो चिंता
उन लाखों चिंटुओं की है जो आरक्षण के दायरे में आने के बावजूद इसका फायदा नहीं उठा
पाते चूंकि जो इसका पहले फायदा उठा चुके हैं वही बार-बार इससे लाभान्वित हो रहे हैं।
मुझे चिंता उनकी है जो आरक्षण के दायरे में नहीं आते और संसाधनों के अभाव में जिनकी
प्रतिभा निखरने से पहले ही दम तोड़ देती है। एक अन्याय को दूसरे अन्याय से ठीक नहीं
किया जा सकता इसलिए वर्तमान आरक्षण व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है।'
मैंने पूछा
'ये सुधार करेगा कौन?' तो वे एक ही घूँट में अपना चाय का कप खत्म कर खड़े हुए
और बोले 'मुझे इसका जवाब मिला तो आपको जरूर बताऊंगा। फिलहाल चलता हूँ, ऑफिस के लिए
देर हो रही है।'
For a long lasting effect, the change has to be demanded by those getting deprived of the benefits meant for them. If the issue continues to be in the discussion rooms and media space, the creamy layer concept will be implemented in letter and spirit soon. Hopefully...!
ReplyDeleteExactly, we should not lose hope for the reservation reforms.
DeleteBut don't hold your breath for it!
ReplyDeleteHappy Holi!