-महेश देवनानी
लो जी, हम तो कब से कह रहे थे कि इस देश में घोड़ों की कोई अहमियत नहीं है, कोई मानता ही नही था। पर अब तो देशभक्तों ने भी
इस बात को प्रमाणित कर दिया है। "सिंपली
हेवन" प्रदेश में राष्ट्रभक्तों ने अपना गुस्सा एक बेजबान घोड़े पर निकाला और उसकी
टाँग तोड़ दी। सुधिजनों के अनुसार यह कारनामा जनता के चुने हुए प्रतिनिधि के
कर-कमलों से हुआ है, तो कुछ का मानना है कि नेताजी तो केवल दंड-गोल खेल रहे थे, टाँग तो दरअसल
फिसलने से टूटी है और यह सीधे-सीधे घोड़े की गलती है। इसमें नेताजी को बेवजह घसीटा
जा रहा है।
अजी अब नेताजी ने किया या नहीं ये तो हमें नहीं पता
पर उस मासूम की टाँग तो टूट ही गयी। यह भी कहा जा रहा है कि वह अब कभी भी अपने पैरो
पर खड़ा नहीं हो पाएगा। यह सुनकर सभी पशु प्रेमियों को गहरा सदमा पहुंचा है। पर
हुज़ूर विचारधारा भी तो किसी चिड़िया का नाम है सो पशु प्रेमियों में भी इस घटना को
लेकर एकमत नहीं है। वे भी इसे अपनी2 विचारधारा की छलनी से छान कर सोशल
मीडिया पर शब्दों के बाण चला रहे हैं। परंतु कुछ शाश्वत पशु प्रेमी इसे राजनीति से
ऊपर उठकर देखने की गलती कर बैठे हैं। ऐसी ही एक केन्द्रीय नेत्री ने तो विधायक जी को
पार्टी से निकालने तक की माँग कर डाली है। अब देखना यह है कि इस विवाद में घोड़े की
जीत होती है या गधे की। वैसे यहाँ यह याद दिलाना उचित होगा कि इस सहृदय पशु प्रेमी
नेत्री के सुपुत्र ने कुछ वर्षों पूर्व एक धर्म विशेष के लोगों के प्रति अपने हृदय
के उद्गार प्रकट कर राष्ट्रवादियों के दिलों में विशेष स्थान बनाया था।
कुछ नादान यह भी सवाल उठा रहे हैं कि विरोध
प्रदर्शन तो ठीक था पर क्या निरीह पशु पर अत्याचार करना भारत माता की संतानों को
शोभा देता है? क्या यह भारत की पुरातन संस्कृति से मेल खाता है? तो भैया ऐसे नादानों
का कुछ नहीं हो सकता। संभव है कुछ भारत माता के सपूत इन नादानों को पाकिस्तान
भेजने की माँग कर दे। वैसे इन नादानों को सोचना चाहिये कि ऐसा भी तो हो सकता है कि
राष्ट्रवादियों ने घोड़े से कोई नारा लगाने को कहा हो और उसने मना कर दिया हो? ऐसा करके घोड़े ने खुद
ही अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारी है। राष्ट्रवाद की ‘अनुपम’ परिभाषा के अनुसार तो यह घोड़ा शत प्रतिशत राष्ट्र-विरोधी है।
इसी बीच कुछ प्रगतिवादियों का मानना है कि पुलिस में घोड़ों
का होना आदिम युग और देश के पिछड़ेपन की निशानी है। विकास के इस स्वर्णिम युग में
पुलिस के भी ‘अच्छे दिन’ आने चाहिये और उसे भी मॉडर्न किया जाना चाहिये। कुछ अतिउत्साही प्रगतिवादी तो यहाँ
तक कह रहे हैं कि अब देश के विकास का पैमाना ‘विकास दर’ के स्थान पर ‘घोड़ा दर’ होना चाहिये - जिस देश में जितने कम घोड़े हों वह देश उतना ही अधिक विकसित
माना जाए। अब इस लिहाज से तो देशभक्तों ने एक घोड़ा कम करके इस देश के विकास में ही
योगदान दिया है।
Those responsible for the amputation of the poor horse must be punished. Isn't cruelty towards animal act applicable here??
ReplyDeleteYes, As per media reports, a couple of people have been arrested.
DeleteHa ha, Mahesh! You're witty, and especially good with sarcasm.
ReplyDeleteBut I think this particular incident goes beyond just a particular politico or his supporters. A lot of people simply don't realize while fighting the full extent of injury that can be sustained by a person (or in this case, an animal) when you kick her/him at critical places (the head, abdomen, ear drums etc.)
To some extent the senseless violence depicted in films and TV is to blame for this. People get whacked by planks of wood that would cause a depressed fractures of the skull and severe contusions in the underlying brain, or get a punch in the abdomen that'd burst the sigmoid colon, and go on to finish the fight laughing...
Of course, the above (not realizing the consequences of kicking or stamping on a fallen horse's legs) is is no excuse for the sick act. I believe the policeman mounted on him sustained injuries too... When he was just doing his work...
And that horse is so beautiful. Shame on them.
Thanks Prashant, I agree with your view.
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