-महेश देवनानी
एक शायर हुआ है जिसे चाँद-सूरज मे भी नजर आती थी रोटियाँ। कहता था - "हम तो न चाँद समझें, न सूरज हैं जानते, बाबा हमें तो यह नज़र आती हैं रोटियाँ।" हालाँकि उस शायर का इंकलाब से उतना ही नाता था जितना राहुल बाबा का अक्लमंदी से है पर यदि वो आज के दौर मे पैदा हुआ होता तो मुमकिन है रोटियों की बात करने पर देशद्रोह के जुर्म मे अंदर कर दिया जाता और 'न्याय के मंदिर' में 'इंसाफ के पुजारियों' के हाथों पूजा-अभिषेक करवा अपने आप को धन्य महसूस करता। किसी ने कहा भी है कि जब मैं गरीब को रोटी देता हूँ तो संत कहलाता हूँ पर जब मैं पूछता हूँ कि गरीब के पास रोटी क्यों नहीं है तो मुझे 'कम्युनिस्ट' कहा जाता है। वैसे भी आजकल 'लाल-बत्ती' वालों का ‘लाल सलाम’ वालों पर विशेष स्नेह उमड़ रहा है।
तो उसी ‘नज़ीर अकबरबादी’ की यह नज़्म लड़कपन मे पहली बार श्री जसदेव सिंह की मखमली आवाज़ में गणतन्त्र दिवस परेड के सजीव प्रसारण के दौरान सुनी थी:-
“जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की।
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की।
ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की।
महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की।”
तो उसी ‘नज़ीर अकबरबादी’ की यह नज़्म लड़कपन मे पहली बार श्री जसदेव सिंह की मखमली आवाज़ में गणतन्त्र दिवस परेड के सजीव प्रसारण के दौरान सुनी थी:-
“जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की।
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की।
ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की।
महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की।”
यूँ तो उर्दू-फ़ारसी अदब मे होली पर लिखने वाला नज़ीर अकेला नहीं है। खुदा-ए-सुख़न मीर तकी मीर, मुसहफी ग़ुलाम हमदानी, सैय्यद इब्राहिम ‘रसखान’ से लेकर शायर-ए-इंकलाब जोश मलीहाबादी, हसरत मोहानी और खय्यामी तक एक लंबी गंगा-जमनी रिवायत है इस देश की जो मुहब्बत और भाईचारे के रंगो मे रंगी है।
होली तो त्योहार ही है नफ़रतों को जला देने का, गिले-शिकवे भुला देने का।
इस दिन दुश्मनों को भी गले लगा लो, रूठे हुओं को फिर से मना लो।
धर्म, जाति, ऊँच-नीच, अपना- पराया भुला कर लगाओ सबको मुहब्बत के रंग, झूमो नाचो और बजाओ चंग।
खाओ खिलाओ मिठाइयाँ पहनो नए लिबास, घोंटों और छलकाओ ठण्डाई के गिलास।
तो हजूरेआला इस पावन पर्व पर अपनी तो यही दुआ है कि होली आपके और आपके परिवार के लिए खुशियां लेकर आये और इस देश को अमन और भाईचारे के रंगों में रंग दे। खय्यामी के शब्दों में:-
“ईमान को ईमान से मिलाओ,
इरफान को इरफान से मिलाओ,
इंसान को इंसान से मिलाओ,
गीता को कुरान से मिलाओ,
दैर-ओ-हरम में हो न जंग, होली खेलो हमारे संग!”
खय्यामी की शान में गुस्ताखी माफ़ हो पर इस नाचीज़ की भी इस होली पर कुछ दिली तमन्ना है:-
“गांधी को मोदी से मिलाओ,
स्मृति को कन्हैया से मिलाओ,
मंदिर को मस्जिद से मिलाओ,
भागवत को ओवेसी से मिलाओ,
प्रेम का सबको लगाओ रंग, होली खेलो हमारे संग!
उत्तर को दक्षिण से मिलाओ,
पटना को मुंबई से मिलाओ,
बाबा को मैगी से मिलाओ,
हमको 'अच्छे दिन' से मिलाओ,
आनंद की सब मिल पियें भंग, होली खेलो हमारे संग!"
आप सभी को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ!!!