Friday, 25 March 2016

होली खेलो हमारे संग

-महेश देवनानी

एक शायर हुआ है जिसे चाँद-सूरज मे भी नजर आती थी रोटियाँ। कहता था - "हम तो न चाँद समझें, न सूरज हैं जानते, बाबा हमें तो यह नज़र आती हैं रोटियाँ।" हालाँकि उस शायर का इंकलाब से उतना ही नाता था जितना राहुल बाबा का अक्लमंदी से है पर यदि वो आज के दौर मे पैदा हुआ होता तो मुमकिन है रोटियों की बात करने पर देशद्रोह के जुर्म मे अंदर कर दिया जाता और 'न्याय के मंदिर' में 'इंसाफ के पुजारियों' के हाथों पूजा-अभिषेक करवा अपने आप को धन्य महसूस करता। किसी ने कहा भी है कि जब मैं गरीब को रोटी देता हूँ तो संत कहलाता हूँ पर जब मैं पूछता हूँ कि गरीब के पास रोटी क्यों नहीं है तो मुझे 'कम्युनिस्ट' कहा जाता है। वैसे भी आजकल 'लाल-बत्ती' वालों का ‘लाल सलाम’ वालों पर विशेष स्नेह उमड़ रहा है।

तो उसी ‘नज़ीर अकबरबादी’ की यह नज़्म लड़कपन मे पहली बार श्री जसदेव सिंह की मखमली आवाज़ में गणतन्त्र दिवस परेड के सजीव प्रसारण के दौरान सुनी थी:-
“जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की।
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की।
ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की।
महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की।”

यूँ तो उर्दू-फ़ारसी अदब मे होली पर लिखने वाला नज़ीर अकेला नहीं है। खुदा-ए-सुख़न मीर तकी मीर, मुसहफी ग़ुलाम हमदानी, सैय्यद इब्राहिम ‘रसखान’ से लेकर शायर-ए-इंकलाब जोश मलीहाबादी, हसरत मोहानी और खय्यामी तक एक लंबी गंगा-जमनी रिवायत है इस देश की जो मुहब्बत और भाईचारे के रंगो मे रंगी है।

होली तो त्योहार ही है नफ़रतों को जला देने का, गिले-शिकवे भुला देने का।
इस दिन दुश्मनों को भी गले लगा लो, रूठे हुओं को फिर से मना लो।
धर्म, जाति, ऊँच-नीच, अपना- पराया भुला कर लगाओ सबको मुहब्बत के रंग, झूमो नाचो और बजाओ चंग।
खाओ खिलाओ मिठाइयाँ पहनो नए लिबास, घोंटों और छलकाओ ठण्डाई के गिलास। 

तो हजूरेआला इस पावन पर्व पर अपनी तो यही दुआ है कि होली आपके और आपके परिवार के लिए खुशियां लेकर आये और इस देश को अमन और भाईचारे के रंगों में रंग दे। खय्यामी के शब्दों में:-
“ईमान को ईमान से मिलाओ,
इरफान को इरफान से मिलाओ,
इंसान को इंसान से मिलाओ,
गीता को कुरान से मिलाओ,
दैर-ओ-हरम में हो न जंग, होली खेलो हमारे संग!”


खय्यामी की शान में गुस्ताखी माफ़ हो पर इस नाचीज़ की भी इस होली पर कुछ दिली तमन्ना है:-
“गांधी को मोदी से मिलाओ,
स्मृति को कन्हैया से मिलाओ,
मंदिर को मस्जिद से मिलाओ,
भागवत को ओवेसी से मिलाओ,
प्रेम का सबको लगाओ रंग, होली खेलो हमारे संग!

उत्तर को दक्षिण से मिलाओ,
पटना को मुंबई से मिलाओ,
बाबा को मैगी से मिलाओ,
हमको 'अच्छे दिन' से मिलाओ,

आनंद की सब मिल पियें भंग, होली खेलो हमारे संग!"

आप सभी को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ!!!


Tuesday, 22 March 2016

बेवफा सनम


-महेश देवनानी

आज सुबह-सुबह जस्सी जी हमारे घर आ धमके। मैंने चाय का प्याला हाथ में थमाया ही था कि बोले -'गलती हमारी ही थी, हम ही मूर्ख थे जो इतनी ज्यादा उम्मीदें लगा बैठे थे। हमें मालूम होना चाहिए था कि जिंदगी, इंसान और मुहब्बत तो बेवफा हैं।' मैंने भी चुटकी लेते हुए कहा -'जस्सी जी, कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी, यूँ कोई बेवफा नहीं होता।' तो मुझे देखकर मुस्कुराये और चाय की चुस्की खेंच कर बोले -'डॉक्टर साब लगता है कोई पर्सनल एक्सपीरियंस है आपको, चोट गहरी लगती है।' और ठहाका मार कर हँस पड़े।

मैंने भी हँसते हुए पूछा -'भाभी जी को तो नहीं खबर आपके इस चक्कर के बारे में?' तो बोले 'वो सब जानती है, मुझसे ज्यादा दुखी तो वही है। कल से मूड ऑफ है, कहती है क्या फायदा ऐसे अंधे-प्रेम का?' मैंने बिस्कुट आगे करते हुए कहा 'अब पहेलियाँ मत बुझाइए, सीधे-सीधे बताइये हुआ क्या?' बोले 'सुना आपने प्रधानमंत्री जी ने क्या कहा? आरक्षण को जारी रखेंगे। खरोंच भी ना आने देंगे' मैंने कहा 'तो इसमें नया क्या है? ये तो सबको पता ही है। इस देश में किसी भी राजनेता या पार्टी में इतनी इच्छाशक्ति नहीं है कि आरक्षण पर ईमानदारी से बात भी कर सके, सुधार तो दूर की बात है।' यह सुन जस्सी जी बोले 'आपकी यही बात मुझे अच्छी लगती है, आप दिमाग से सोचते हो और मैं दिल से। जब से १० लाख से ज्यादा आमदनी वालों की रसोई गैस की सब्सिडी बंद हुई थी मैं तो आस लगाये बैठा था कि अब ऐसा ही कुछ आरक्षण में भी होगा। नागपुर से भी कुछ ऐसे ही संकेत आ रहे थे। मगर हाय रे राजनैतिक मजबूरी, सारे अरमानों पर पानी फेर दिया। उस पर सरकार के एक मंत्री तो निजी क्षेत्र में भी आरक्षण की बात कर रहे हैं।'

मैंने कहा 'छोड़ो जस्सी जी आप क्यों चिंता करते हो? अपना चिंटू तो लाखों में एक है। सुना है इस बार भी क्लास में टॉप किया है।' बोले 'मुझे अपने चिंटू की चिंता नहीं है। मुझे तो चिंता उन लाखों चिंटुओं की है जो आरक्षण के दायरे में आने के बावजूद इसका फायदा नहीं उठा पाते चूंकि जो इसका पहले फायदा उठा चुके हैं वही बार-बार इससे लाभान्वित हो रहे हैं। मुझे चिंता उनकी है जो आरक्षण के दायरे में नहीं आते और संसाधनों के अभाव में जिनकी प्रतिभा निखरने से पहले ही दम तोड़ देती है। एक अन्याय को दूसरे अन्याय से ठीक नहीं किया जा सकता इसलिए वर्तमान आरक्षण व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है।'

मैंने पूछा 'ये सुधार करेगा कौन?' तो वे एक ही घूँट में अपना चाय का कप खत्म कर खड़े हुए और बोले 'मुझे इसका जवाब मिला तो आपको जरूर बताऊंगा। फिलहाल चलता हूँ, ऑफिस के लिए देर हो रही है।'

Saturday, 19 March 2016

नेताजी की चेतावनी

-महेश देवनानी

कल शाम को हमारे पड़ोसी जस्सी जी टकरा गए। जस्सी जी यूँ तो बड़े सज्जन एवं भद्र पुरूष हैं मगर अपने घर का कचरा पडोसी के घर के सामने डालने की कला में इन्हें महारथ हासिल है। बड़े ही ज्ञानी हैं, देश-विदेश की ख़बरों के साथ-२ मुहल्ले के लड़के-लड़कियों की हर 'एक्टिविटी' पर भी इनकी पैनी निगाह रहती है।

मैने दुआ सलाम कर पूछा -'किधर चल दिए जस्सी जी?', तो बोले ग्रोसरी लेने जा रहा हूँ। एक जमाना था जब लोग किराना लेने जाते थे, आजकल ग्रोसरी लेने जाते हैं। वैश्वीकरण का इस देश पर कुछ और प्रभाव पड़ा हो या नहीं परन्तु भाषा का स्तर अवश्य ही उन्नत हुआ है। हमारे पड़ोसी गुप्ता जी ने भी अपनी खानदानी दुकान का नाम 'छगनलाल रेवाचंद किराणा स्टोर' से बदल कर 'आल इन वन ग्रोसरी' रख लिया है। इससे उनके धंधे मे बढ़ोतरी हुई या नहीं यह तो वे ही जाने, पर सुनते हैं कि अब उनके बेटे को बाप की दुकान का नाम स्कूल में बताने में शर्म महसूस नहीं होती।

जस्सी जी को कुछ उदास देख मैने पूछा 'सब खैरियत से तो है?' तो उन्होंने मुझे ऐसे घूरा जैसे ऋतिक आजकल कंगना का नाम लेने वालों को घूरता है। बोले - 'किस दुनिया में रहते हैं आप, कुछ मालूम भी है क्या होने वाला है?' मैने कहा -'एडवाइजर साब तो चले गए तो कार-फ्री डे तो होगा नहीं, और क्या होने वाला था?' मेरा इतना कहना था कि उन्होंने अपना सिर ऐसे पीटा जैसे एक बाप अपने निकम्मे बेटे का जवाब सुनकर पीटता है। बोले -'नेताजी ने चेतावनी दी है कि यदि उन्हें उम्मीदवार नहीं चुना गया तो दंगे भी हो सकते हैं।' यह सुन मुझे अपने आप से बड़ी ग्लानि महसूस हुई, धिक्कार है अगर मैं ऐसी महान चेतावनी देने वाले साहसी नेताजी की निर्मल वाणी से अब तक वंचित हूँ। फिर भी अपने आप को सँभालते हुए मैने पूछा-'ऐसी दिव्य भविष्यवाणी किस महापुरूष ने की है, कहाँ हो रहे हैं चुनाव?' तो बोले -'श्री ट्रम्प जी ने कहा है, अमेरिका के संभावित राष्ट्रपति।'

खुदा की कसम गुस्सा तो बहुत आया मुझे पर संयत होकर मैने कहा -'जस्सी जी इससे हमें क्या फर्क पड़ता है?' जस्सी जी कुछ देर तो मौन रहे, फिर एक गहरी साँस ली और बोले -'ठीक ही कहते हैं आप, अगर अमेरिका में दंगा होता है तो इससे हमें क्या फर्क पड़ता है? फर्क तो हमें अपने देश में दंगा होने पर भी नहीं पड़ता। सियासत की बिसात पर बादशाहों और उनके वज़ीरों की हुकूमतों की जंग में हम तो बस प्यादे हैं जो मजहब और नफरत की आग में झोंक दिए जाते हैं। हिन्दू का घर जले या मुसलमान का, रोती तो मानवता ही है। पर चलो आप ठीक ही कहते हो....' कहते कहते उनकी आवाज भर आई और वो अपना झोला उठाकर चले गए। मैं चुपचाप निस्तब्ध सा उन्हें जाते हुए देखता रहा।

Friday, 18 March 2016

भारत माता की जय

-महेश देवनानी

राम कसम, हैदराबाद वाले भाईजान की बात सुनकर तो मुझे मेरा बचपन याद आ गया। बचपन में मैं भी बड़ा विद्रोही था। जो काम करने के लिए बोलो वो नहीं करता था और जो ना करने के लिए बोलो वो जरूर करता था। मेरी माँ कहती थी - ये तो पैदा भी उल्टा ही हुआ था - पढाई करने को बोलो तो कहेगा खेलने जाना है, और कभी कहो कि बाहर जाकर खेल ताकि घर का काम कर लूँ तो कहेगा आज तो होमवर्क बहुत है, पढाई करनी है। तो मित्रों हो सकता है कि अपने भाईजान की भी 'ब्रीच' डिलीवरी हुई हो।

वैसे इंसान की प्रवृत्ति है कि जोर जबरदस्ती से कोई काम नहीं करता, प्यार मुहब्बत से जान भी मांग लो तो ख़ुशी-२ हाजिर कर देगा। बड़े बुजुर्ग फरमाते है कि दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं जो प्रेम से नहीं हो सकता, फिर भी न जाने क्यों भाईलोग हर समस्या को लट्ठ लेकर सुलझाना चाहते हैं? कभी किसी ट्रैफिक पुलिस वाले ने आपकी गाड़ी साइड पे लगवाई हो तो आप भली भाँति जानते हैं कि 'प्रेम व्यवहार' तथा 'नियम कायदों के भाषण' में से कौनसा तरीका काम आता है।

कल गली के नुक्कड़ पे समझदार बता रहे थे कि मूर्खों 'भारत माता की जय' और 'हिंदुस्तान ज़िंदाबाद' दोनों एक ही बात हैं। ये उसी तरह है जैसे कान को इधर से पकड़ो या उधर से। मगर कुछ लकीर के फकीर समझ कर भी नहीं समझना चाहते। वो चाहते हैं कि इस आज़ाद हिन्दुस्तान में सभी लोग वही बोलें जो वो चाहते हैं, वही खाएं जो वो चाहते हैं, वही पहने जो वो चाहते हैं। और जो ऐसा नहीं करते वो पड़ोसी मुल्क चले जाएँ। अब इन भले लोगों को कोई बताये कि भारत माता के दीवानों और मादरे वतन पर मर मिटने वालों के जज्बों में कोई बुनियादी फर्क नहीं है।

इस पूरे बखेड़े के बीच कुछ अतिज्ञानवान लोग तो भारत को स्त्रीलिंग (माता) बताने को भी ठीक नहीं समझते। उनका मानना है कि मातृभूमि भले ही स्त्रीलिंग हो परन्तु भारत शब्द तो पुर्लिंग ही है - क्या आप किसी भारत नाम की महिला को जानते हैं? चलो जी अब हम क्यों इस व्याकरण के पचड़े में पड़े। हम तो बस इतनी ही दुआ करते हैं कि ऊपर वाला इन देशप्रेमी दीवानों को थोड़ी सद्-बुद्धि दे। आमीन !!!

Thursday, 17 March 2016

घोड़े की टाँग

-महेश देवनानी  

लो जी, हम तो कब से कह रहे थे कि इस देश में घोड़ों की  कोई अहमियत नहीं है, कोई मानता ही नही था पर अब तो देशभक्तों ने भी इस बात को प्रमाणित कर दिया है।  "सिंपली हेवन" प्रदेश में राष्ट्रभक्तों ने अपना गुस्सा एक बेजबान घोड़े पर निकाला और उसकी टाँग तोड़ दी। सुधिजनों के अनुसार यह कारनामा जनता के चुने हुए प्रतिनिधि के कर-कमलों से हुआ है, तो कुछ का मानना है कि नेताजी तो केवल दंड-गोल खेल रहे थे, टाँग तो दरअसल फिसलने से टूटी है और यह सीधे-सीधे घोड़े की गलती है। इसमें नेताजी को बेवजह घसीटा जा रहा है।

अजी अब नेताजी ने किया या नहीं ये तो हमें नहीं पता पर उस मासूम की टाँग तो टूट ही गयी। यह भी कहा जा रहा है कि वह अब कभी भी अपने पैरो पर खड़ा नहीं हो पाएगा। यह सुनकर सभी पशु प्रेमियों को गहरा सदमा पहुंचा है। पर हुज़ूर विचारधारा भी तो किसी चिड़िया का नाम है सो पशु प्रेमियों में भी इस घटना को लेकर एकमत नहीं है। वे भी इसे अपनी2 विचारधारा की छलनी से छान कर सोशल मीडिया पर शब्दों के बाण चला रहे हैं। परंतु कुछ शाश्वत पशु प्रेमी इसे राजनीति से ऊपर उठकर देखने की गलती कर बैठे हैं। ऐसी ही एक केन्द्रीय नेत्री ने तो विधायक जी को पार्टी से निकालने तक की माँग कर डाली है। अब देखना यह है कि इस विवाद में घोड़े की जीत होती है या गधे की। वैसे यहाँ यह याद दिलाना उचित होगा कि इस सहृदय पशु प्रेमी नेत्री के सुपुत्र ने कुछ वर्षों पूर्व एक धर्म विशेष के लोगों के प्रति अपने हृदय के उद्गार प्रकट कर राष्ट्रवादियों के दिलों में विशेष स्थान बनाया था।

कुछ नादान यह भी सवाल उठा रहे हैं कि विरोध प्रदर्शन तो ठीक था पर क्या निरीह पशु पर अत्याचार करना भारत माता की संतानों को शोभा देता है? क्या यह भारत की पुरातन संस्कृति से मेल खाता है? तो भैया ऐसे नादानों का कुछ नहीं हो सकता। संभव है कुछ भारत माता के सपूत इन नादानों को पाकिस्तान भेजने की माँग कर दे। वैसे इन नादानों को सोचना चाहिये कि ऐसा भी तो हो सकता है कि राष्ट्रवादियों ने घोड़े से कोई नारा लगाने को कहा हो और उसने मना कर दिया हो? ऐसा करके घोड़े ने खुद ही अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारी है। राष्ट्रवाद की अनुपम परिभाषा के अनुसार तो यह घोड़ा शत प्रतिशत राष्ट्र-विरोधी है।

इसी बीच कुछ प्रगतिवादियों का मानना है कि पुलिस में घोड़ों का होना आदिम युग और देश के पिछड़ेपन की निशानी है। विकास के इस स्वर्णिम युग में पुलिस के भी अच्छे दिन आने चाहिये और उसे भी मॉडर्न किया जाना चाहिये। कुछ अतिउत्साही  प्रगतिवादी तो यहाँ तक कह रहे हैं कि अब देश के विकास का पैमाना विकास दर के स्थान पर घोड़ा दर होना चाहिये - जिस देश में जितने कम घोड़े हों वह देश उतना ही अधिक विकसित माना जाए। अब इस लिहाज से तो देशभक्तों ने एक घोड़ा कम करके इस देश के विकास में ही योगदान दिया है।