Wednesday, 27 June 2018

मेंढकी को जुखाम

-महेश देवनानी

रात्रि का पहला पहर था। नीले आकाश में बादलों से छन के आती हुई चाँदनी यूँ मालूम होती थी जैसे फोटोथेरेपी मशीन के सफेद कवर से ढके फ्लोरोसेंट बल्ब से आती हुई रौशनी। ताजा ताजा हुई बारिश से भीगी मिट्टी की खुशबू पश्चिम से आती बयार पर सवार हो पास के नाले पर से गुजरकर जब नथुनों में प्रवेश करती थी तो मेडिकल कॉलेज के डिसेक्शन हॉल की याद आ जाती थी। उस पर दूर किसी शादी के डीजे से आती ये स्वरलहरियाँ कानों में शहद घोल रहीं थी - "तेरे गुत्त नु कड़ा सरदारनिए डायमंड दी झांझर पा दांगे ...."।

पर इन सबके बावजूद उसकी आँखों में नींद का नामों-निशां तक न था। आखिर उससे रहा न गया - "पिछले आधे घंटे से देख रही हूँ, कमरे के दस चक्कर लगा चुके हैं आप।  तीन बार फ्रिज खोल कर बिना कुछ किये बंद किया है, क्या चिंता सत्ता रही है स्वामी?" इन्द्राणी ने इन्द्र की बेचैनी देखकर पूछा।

"कुछ नहीं प्रिये, बस यूँ ही, नींद नहीं आ रही। आजकल काम का स्ट्रेस बहुत है। उस पर जीएसटी ने परेशान किया हुआ है" इन्द्र ने टालते हुए कहा।

"देख रही हूँ, इस वर्ष जबसे पृथ्वीलोक पर वर्षाऋतु का आगमन हुआ है, आप खोये खोये से रहते हैं। कई रातों से आप ठीक से सोये भी नहीं हैं। कहीं ये आइकिया के नए बिस्तर के कारण तो नहीं? मैंने तो ५०% डिस्काउंट के चलते आर्डर किया था। इंद्रलोक में डिलीवरी के साथ रेस-३ की दो टिकटें भी फ्री थी, और पॉपकॉर्न पे डिस्काउंट अलग से।"

"नहीं प्रिये, वो तो योगा डे पर कुछ ज्यादा ही जोश दिखा दिया था जिसके कारण रोम रोम में दर्द हो रहा था। ब्रह्माजी को भी न जाने क्या सूझी है, चैन से बैठने नहीं देते। कभी कहते हैं योग करो, तो कभी इंद्रलोक की सफाई। पर तुम्हारा गोमूत्र में च्यवनप्राश मिलाकर पीने वाला फार्मूला कमाल का था। सारा दर्द रफूचक्कर हो गया।"

"आप कौनसा मन लगाकर योग कर रहे थे? मैं देख रही थी, आपका सारा ध्यान तो फोटो खिंचवाने में ही था। सरकारी योजनाओं की खानापूर्ति करने में आप आर्यावर्त के नौकरशाहों से कम थोड़े ही हैं।" ऐसा कहकर इन्द्राणी जोर से खिलखिला उठी। 

"बस ये फोटो खिंचवाने जितना योग करने में ही ये हाल हो गया था।" इन्द्र ने भी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा।

"मुझे तो पहले ही पता था। आपके 'स्टेमिना' के बारे में मुझसे बेहतर कौन जानता है?" कहकर इन्द्राणी ने इन्द्र को प्यार भरी निगाहों से देखा। इन्द्र के होठों पर भी हल्की सी मुस्कान पसर गयी।

कुछ देर के लिए कमरे में सन्नाटा था।  इंद्र ने सोचा चलो जान छूटी। पर इन्द्राणी कहाँ छोड़ने वाली थी - "आजकल आप मुझसे कुछ छुपा रहे हैं। कल आपने व्हाट्सएप्प स्टेटस भी चेंज किया है - 'स्माइल इज द बिगिनिंग ऑफ लव'। सीधा सीधा ही लिख देते - 'हँसी तो फँसी', इसमें इतनी अंग्रेजी झाड़ने की क्या जरूरत थी?" ऐसा कहकर इन्द्राणी ने आइकिया के नए बिस्तर पर अपना मुँह दूसरी तरफ फेर लिया।

इन्द्र समझदार हैं। जानते हैं कि स्त्री की जिज्ञासा को शक में बदलते देर नहीं लगती, सो अपने स्वर में अतिरिक्त मधुरता घोलते हुए बोले - "ऐसी बात नहीं है प्राणप्रिये, आजकल पृथ्वीलोक के मानव ने बड़ा परेशान किया हुआ है। रोज रोज नए हथकंडे, बड़ा प्रेशर है, बस उसी को लेकर मन जरा उदास रहता है।"

इन्द्राणी ने उठकर अपना हाथ इन्द्र के कंधे पर रखा और भोलेपन से पूछा - "इस साल फिर से मुंबई वालों ने बारिश को लेकर आपको ट्विटर पे ट्रोल किया क्या?"

"अरे नहीं।  मुंबई वालों को तो समझ में आ गया है कि उनकी इस हालत के जिम्मेदार बीएमसी, महाराष्ट्र की सरकारें, गलत टाउन प्लानिंग, और बहुत हद तक वे खुद ही हैं। और कोई भी हो पर मैं उनकी इस हालत का जिम्मेदार बिलकुल नहीं हूँ।"

"फिर क्या चिंता है स्वामी?"

इंद्र ने इन्द्राणी के हाथ अपने हाथों में लेकर कहा - "पिछले कुछ वर्षों से मानव के स्वभाव में बड़े अजीब से परिवर्तन देखने में आ रहे हैं। पहले मैं सोचता था कि मानव के विकास के क्रम में वर्तमान मानव सबसे श्रेष्ट और वैज्ञानिक विचारधारा वाला है, परन्तु अब लगता है कि मानव के विकास का पहिया पिछले कुछ वर्षों से उल्टी दिशा में घूम रहा है...."

"...अब देखो ना, मुझे खुश करने के लिए क्या क्या नहीं कर रहे। कुछ दिनों पहले बेचारे मेंढक और मेंढकी को पकड़कर जबरन शादी करवा दी और ये प्रचारित किया कि ऐसा करने से मैं खुश होकर बारिश कर दूंगा। अरे भाई, मुझे खुश करना है तो सलमान की शादी करवाओ न।" ऐसा कहकर इन्द्र की आँखे चमक उठी।

"वैसे पृथ्वीलोक पर मेंढक की शादी की कानूनी उम्र क्या है?" इन्द्राणी ने शरारत भरे अंदाज़ से पूछा और दोनों ठहाका लगाकर हंस पड़े।

इंद्र ने आगे कहा -"मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता ऐसे ढकोसलों से। पर मेरी चिंता ये है कि इन चोंचलों से लोगों का ध्यान वर्षा न होने के असली कारणों से भटकाया जा रहा है। मानव को यदि अपनी आने वाली नस्लों के लिए पृथ्वी को बचाये रखना है तो ग्लोबल वार्मिंग, ग्रीन हाउस गैसेज,अक्षय ऊर्जा इत्यादि पर और अधिक ध्यान देना चाहिए, ना कि मेंढकों की शादी पर।"

"ह्म्मम्म्म्म....." इन्द्राणी ने एक गहरी साँस भरी और बोली - "मानव को सुधारने का कोई फार्मूला है आपके पास?" और कुछ क्षणों पश्चात खुद ही जवाब दिया "नहीं ना, तो फिर रात बहुत हो गयी है, आप भी सो जाएँ और मुझे भी सोने दे। कल सुबह सरस्वती भाभी के साथ जुम्बा क्लासेज जाना है।" कहकर इन्द्राणी ने लाइट बंद की और सो गयी। पर इंद्र का बेचैन दिमाग अब भी सोच रहा था कि बेचारा मेंढक ही क्यों? 

रात्रि का दूसरा पहर था। चाँद भी थक कर बादलों की ओट में सो गया था। मंद-मंद बहती पवन से यदा-कदा कुछ शाखों के टकराने की ध्वनि रात के सन्नाटे में एकमात्र व्यावधान थी। शादी का डीजे भी बंद हो गया था, जिसका मतलब था कि मेंढक-मेंढकी की शादी के बाराती नाच-गा कर अपने अपने घरों को प्रस्थान कर चुके थे।

4 comments:

  1. मज़ेदार थी महेश, कई स्तरों पर।

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  2. धन्यवाद भाई प्रशांत, आपको पसंद आया जानकार प्रसन्नता हुई।

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  3. बहुत बढ़िया! लेकिन मुझे टाइटल नहीं समझ आया।

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    1. धन्यवाद! मेंढकी को जुखाम होने का मतलब है औकात (जरूरत) से अधिक नखरे होना।

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