Thursday, 6 October 2016

Where is the Ethics?

-Mahesh Devnani


The October issue of Health Affairs contain seven articles on ‘Quality of health care in India’1-7. One of them is a commentary1, two are based on secondary data2-3 and 4 studies involve human subjects4-7. This is a welcome step which would hopefully strengthen the discussion on quality in Indian healthcare sector.
 
However, out of the 4 studies involving human subjects, Mohanan et al7 is silent on any review board or ethical approvals taken for the study, and only 2 studies5-6 partially mention about participant’s consent whereas the other two studies4,7 are completely silent on this important aspect of research involving human subjects. Two studies2-3 based on secondary data do not mention if the studies were exempted from review/ethical board approval (Table 1).

Table 1: Review board/ethical approval and consent
Article
Involvement of human subjects
Mentions about Review Board /Ethical approval or exemption
Whether the consent was taken from participants in local language
Mohanan et al7
Yes
No
No mention
Das et al4
Yes
Yes
No mention
Babiarz et al5
Yes
Yes
Mentions that consent was not needed for DLHS-3 data, but nothing mentioned about consent in household survey conducted in Gujarat
Le et al6
Yes
Yes
Mentions that patients were excluded from study if they were unable to provide consent
Munshi et al2
No
No
N.A.
Morton et al3
No
No
N.A.


Explicit communication of review board approvals and informed consent is an important aspect of research publication involving human subjects8-9 and it is surprising that editorial and peer review process of Health Affairs overlooked this aspect. International agencies and researchers have long been allegedly accused of unethical research practices involving poor people of developing countries10, hence suo moto communication of review board approvals and methodology of obtaining informed consent becomes more important while publishing such studies.

While it is heartening to see a cluster of articles on quality of care in India, it is expected that the commonly accepted norms of ethical research publication are also followed.

Notes
  1. Mohanan M, Hay K, Mor N. Quality of health care in india: challenges, priorities, and the road ahead. Health Aff (Millwood) 2016;35:1753-8.
  2. Munshi V, Yamey G, Verguet S. Trends in state-level child mortality, maternal mortality, and fertility rates in India. Health Aff (Millwood) 2016;35:1759-63.
  3. Morton M, Nagpal S, Sadanandan R, Bauhoff S. India's largest hospital insurance program faces challenges in using claims data to measure quality. Health Aff (Millwood) 2016;35:1792-9.
  4. Das J, Mohpal A. Socioeconomic status and quality of care in rural India: New evidence from provider and household surveys. Health Aff (Millwood) 2016;35:1764-73.
  5. Babiarz KS, Mahadevan SV, Divi N, Miller G. Ambulance service associated with reduced probabilities of neonatal and infant mortality in two Indian states. Health Aff (Millwood) 2016;35:1774-82.
  6. Le HG, Ehrlich JR, Venkatesh R, Srinivasan A, Kolli A, Haripriya A, et al. A sustainable model for delivering high-quality, efficient cataract surgery in southern India. Health Aff (Millwood) 2016;35:1783-90.
  7. Mohanan M, Babiarz KS, Goldhaber-Fiebert JD, Miller G, Vera-Hernández M. Effect of a large-scale social franchising and telemedicine program on childhood diarrhea and pneumonia outcomes in India. Health Aff (Millwood) 2016;35:1800-9.
  8. Taljaard M, McRae AD, Weijer C, Bennett C, Dixon S, Taleban J, et al. Inadequate reporting of research ethics review and informed consent in cluster randomised trials: review of random sample of published trials. BMJ 2011;342:d2496.
  9. Schroter S, Plowman R, Hutchings A, Gonzalez A. Reporting ethics committee approval and patient consent by study design in five general medical journals. J Med Ethics 2006;32:718-23.
  10. Angell M. The ethics of clinical research in the Third World. N Engl J Med 1997;337:847-9.

Friday, 1 April 2016

पीजीआई के मरीज़ो ने बनाया विश्व कीर्तिमान

-महेश देवनानी 


कायाकल्प मे पूरे देश मे प्रथम स्थान प्राप्त करने के बाद अब पीजीआई ने एक विश्व कीर्तिमान भी स्थापित कर अपने आप को देश मे चिकित्सा के क्षेत्र मे सर्वोच्च स्थान पर पदस्थापित कर लिया है। विश्व कीर्तिमानों को सत्यापित करने वाली संस्था “गिनिपिग बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स” के अध्यक्ष श्री किम जोंग-उन ने उत्तरी कोरिया से फोन पर बताया कि पीजीआई के मरीजों ने सबसे लंबे समय तक कतारों में खड़े हो इंतज़ार करने का नया विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है। उनके अनुसार पीजीआई के मरीजों ने पिछले वित्त वर्ष (2015-16) में कुल 1 करोड़ घंटे लाइनों मे खड़े रहकर पुराने सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिये हैं।

अपनी इस उपलब्धि पर संस्थान ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर सभी कर्मचारियों और मरीजों को बधाई देते हुए इसे टीम वर्क का परिणाम बताया है। विज्ञप्ति मे निकटवर्ती प्रदेशों को भी साधुवाद का पात्र बताया गया है जिनकी अथक लगन एवं मेहनत के बिना यह संभव नहीं था। ज्ञात हो कि निकटवर्ती प्रदेशों ने बड़ी मेहनत से वर्षों तक अपने चिकित्सा संस्थानों को विकास से वंचित रख पीजीआई के इस कीर्तिमान मे अपना योगदान दिया है।

जब हमारे संवाददाता ने पीजीआई मे कुछ मरीज़ो से बात की तो वे भी यह समाचार सुन बड़े उत्साहित नज़र आए। संगरूर से आए जस्सी ने बताया कि वो पिछले कई वर्षों से पीजीआई की लाइनों मे खड़ा हो रहा है और इससे उसे अनेकों प्रकार के लाभ पहुंचे हैं – “पहला तो आप अपने समय का सदुपयोग नए दोस्त बनाने मे कर सकते हैं। जितने नए मित्र मैंने पीजीआई मे बनाएँ हैं उतने तो फ़ेसबुक, स्नैपचैट, इंस्टाग्राम, और व्हाट्सएप सब मिलाकर भी नहीं बना पाया। दूसरा ये कतारें सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाने एवं जातिवाद मिटाने में भी योगदान देती हैं। मरीज इन कतारों में जाति-धर्म, ऊँच-नीच, गरीब-अमीर का भेद मिटाकर समाजवाद की मिसाल कायम करते हैं।” पहाड़ों से आई कंगना देवी ने बताया कि वो पिछले 50 सालों से पीजीआई आ रही हैं और यहाँ की कतारों की तरक्की देख अतिप्रसन्न हैं। उन्हें इन कतारों से इतना लगाव है कि हर छोटी-बड़ी बीमारी के लिए सीधा पीजीआई का ही रूख करती हैं।

वरिष्ठ नागरिकों से जुड़े एक संगठन के सचिव श्री बेनीवाल ने यूं तो कीर्तिमान स्थापित होने पर खुशी जाहिर की पर साथ ही कहा कि इसमे पीजीआई स्टाफ से कोई सहयोग नहीं मिला है – “पीजीआई स्टाफ और उनके चहेते बिना इंतज़ार किए सीधे ही डॉक्टर को जाकर दिखा लेते हैं, इससे भी कीर्तिमान स्थापित होने मे देरी हुई है।” वरिष्ठ नागरिकों की उम्र को 70 वर्ष से घटा कर 60 वर्ष करने को भी उन्होने गलत बताया – “अब 60 से 70 वर्ष की उम्र वालों का काम भी जल्दी हो जाता है, जबकि पहले उन्हे लंबा इंतज़ार करने का सौभाग्य मिलता था।” कुछ लोगों का कहना था कि पीजीआई द्वारा ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू करना भी इस कीर्तिमान के मार्ग मे रुकावट लाया परंतु प्रबुद्ध मरीजों ने इसका इस्तेमाल नहीं कर देशभक्ति का परिचय दिया है। ये लोग पीजीआई में शुरू होने वाले स्मार्ट कार्ड का भी विरोध कर रहे हैं।

पीजीआई मे चर्चा है कि इस उपलब्धि को हासिल करना जितना कठिन था इसे बनाये रखना उससे भी कठिन है। इसे देखते हुए कई सुझाव सुनने मे आ रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि सालाना होने वाले रिसर्च डे पर लगने वाले इनोवेशन बाज़ार मे इस विषय पर एक विशेष पुरस्कार की घोषणा की जाए। सूत्रों के अनुसार पीजीआई “पेशेंट वेटिंग टाइम ग्रांटकी भी घोषणा कर सकता है ताकि इस क्षेत्र मे नवीन शोध को बढ़ावा मिल सके। खबर है कि फ़ैकल्टि एसोसिएशन जो हालिया दिनो मे चुनावों को लंबित रखने से चर्चा में है भी “लर्निंग रिसौर्स अलाऊन्स” की तर्ज़ पर “पेशेंट वेटिंग अलाऊन्सकी मांग कर सकती है। अस्पताल प्रशासन से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आगामी वित्त-वर्ष में संस्थान कुर्सियों की खरीद पर पाबंदी लगाने पर विचार कर सकता है। इसके अतिरिक्त दानदाताओं से भी अपील की जा सकती है कि दान मे कुर्सी न दे। ऐसा माना जा रहा है कि इन सभी उपायों से विश्व कीर्तिमान को अगले वर्ष भी बनाए रखने मे मदद मिलेगी।

अब देखना यह है कि ये सभी उपाय आने वाले दिनों मे कितने कारगर साबित होते हैं? फिलहाल तो संस्थान अपनी इस उपलब्धि पर गौरवान्वित महसूस कर रहा है।

विशेष आभार: इस लेख को लिखने की प्रेरणा के लिए मैं इस अन्य लेख का आभारी हूँ: http://www.chevening.org/scholars/news/2016/chevening-scholars-set-world-record-for-queueing
   

Friday, 25 March 2016

होली खेलो हमारे संग

-महेश देवनानी

एक शायर हुआ है जिसे चाँद-सूरज मे भी नजर आती थी रोटियाँ। कहता था - "हम तो न चाँद समझें, न सूरज हैं जानते, बाबा हमें तो यह नज़र आती हैं रोटियाँ।" हालाँकि उस शायर का इंकलाब से उतना ही नाता था जितना राहुल बाबा का अक्लमंदी से है पर यदि वो आज के दौर मे पैदा हुआ होता तो मुमकिन है रोटियों की बात करने पर देशद्रोह के जुर्म मे अंदर कर दिया जाता और 'न्याय के मंदिर' में 'इंसाफ के पुजारियों' के हाथों पूजा-अभिषेक करवा अपने आप को धन्य महसूस करता। किसी ने कहा भी है कि जब मैं गरीब को रोटी देता हूँ तो संत कहलाता हूँ पर जब मैं पूछता हूँ कि गरीब के पास रोटी क्यों नहीं है तो मुझे 'कम्युनिस्ट' कहा जाता है। वैसे भी आजकल 'लाल-बत्ती' वालों का ‘लाल सलाम’ वालों पर विशेष स्नेह उमड़ रहा है।

तो उसी ‘नज़ीर अकबरबादी’ की यह नज़्म लड़कपन मे पहली बार श्री जसदेव सिंह की मखमली आवाज़ में गणतन्त्र दिवस परेड के सजीव प्रसारण के दौरान सुनी थी:-
“जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की।
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की।
ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की।
महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की।”

यूँ तो उर्दू-फ़ारसी अदब मे होली पर लिखने वाला नज़ीर अकेला नहीं है। खुदा-ए-सुख़न मीर तकी मीर, मुसहफी ग़ुलाम हमदानी, सैय्यद इब्राहिम ‘रसखान’ से लेकर शायर-ए-इंकलाब जोश मलीहाबादी, हसरत मोहानी और खय्यामी तक एक लंबी गंगा-जमनी रिवायत है इस देश की जो मुहब्बत और भाईचारे के रंगो मे रंगी है।

होली तो त्योहार ही है नफ़रतों को जला देने का, गिले-शिकवे भुला देने का।
इस दिन दुश्मनों को भी गले लगा लो, रूठे हुओं को फिर से मना लो।
धर्म, जाति, ऊँच-नीच, अपना- पराया भुला कर लगाओ सबको मुहब्बत के रंग, झूमो नाचो और बजाओ चंग।
खाओ खिलाओ मिठाइयाँ पहनो नए लिबास, घोंटों और छलकाओ ठण्डाई के गिलास। 

तो हजूरेआला इस पावन पर्व पर अपनी तो यही दुआ है कि होली आपके और आपके परिवार के लिए खुशियां लेकर आये और इस देश को अमन और भाईचारे के रंगों में रंग दे। खय्यामी के शब्दों में:-
“ईमान को ईमान से मिलाओ,
इरफान को इरफान से मिलाओ,
इंसान को इंसान से मिलाओ,
गीता को कुरान से मिलाओ,
दैर-ओ-हरम में हो न जंग, होली खेलो हमारे संग!”


खय्यामी की शान में गुस्ताखी माफ़ हो पर इस नाचीज़ की भी इस होली पर कुछ दिली तमन्ना है:-
“गांधी को मोदी से मिलाओ,
स्मृति को कन्हैया से मिलाओ,
मंदिर को मस्जिद से मिलाओ,
भागवत को ओवेसी से मिलाओ,
प्रेम का सबको लगाओ रंग, होली खेलो हमारे संग!

उत्तर को दक्षिण से मिलाओ,
पटना को मुंबई से मिलाओ,
बाबा को मैगी से मिलाओ,
हमको 'अच्छे दिन' से मिलाओ,

आनंद की सब मिल पियें भंग, होली खेलो हमारे संग!"

आप सभी को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ!!!


Tuesday, 22 March 2016

बेवफा सनम


-महेश देवनानी

आज सुबह-सुबह जस्सी जी हमारे घर आ धमके। मैंने चाय का प्याला हाथ में थमाया ही था कि बोले -'गलती हमारी ही थी, हम ही मूर्ख थे जो इतनी ज्यादा उम्मीदें लगा बैठे थे। हमें मालूम होना चाहिए था कि जिंदगी, इंसान और मुहब्बत तो बेवफा हैं।' मैंने भी चुटकी लेते हुए कहा -'जस्सी जी, कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी, यूँ कोई बेवफा नहीं होता।' तो मुझे देखकर मुस्कुराये और चाय की चुस्की खेंच कर बोले -'डॉक्टर साब लगता है कोई पर्सनल एक्सपीरियंस है आपको, चोट गहरी लगती है।' और ठहाका मार कर हँस पड़े।

मैंने भी हँसते हुए पूछा -'भाभी जी को तो नहीं खबर आपके इस चक्कर के बारे में?' तो बोले 'वो सब जानती है, मुझसे ज्यादा दुखी तो वही है। कल से मूड ऑफ है, कहती है क्या फायदा ऐसे अंधे-प्रेम का?' मैंने बिस्कुट आगे करते हुए कहा 'अब पहेलियाँ मत बुझाइए, सीधे-सीधे बताइये हुआ क्या?' बोले 'सुना आपने प्रधानमंत्री जी ने क्या कहा? आरक्षण को जारी रखेंगे। खरोंच भी ना आने देंगे' मैंने कहा 'तो इसमें नया क्या है? ये तो सबको पता ही है। इस देश में किसी भी राजनेता या पार्टी में इतनी इच्छाशक्ति नहीं है कि आरक्षण पर ईमानदारी से बात भी कर सके, सुधार तो दूर की बात है।' यह सुन जस्सी जी बोले 'आपकी यही बात मुझे अच्छी लगती है, आप दिमाग से सोचते हो और मैं दिल से। जब से १० लाख से ज्यादा आमदनी वालों की रसोई गैस की सब्सिडी बंद हुई थी मैं तो आस लगाये बैठा था कि अब ऐसा ही कुछ आरक्षण में भी होगा। नागपुर से भी कुछ ऐसे ही संकेत आ रहे थे। मगर हाय रे राजनैतिक मजबूरी, सारे अरमानों पर पानी फेर दिया। उस पर सरकार के एक मंत्री तो निजी क्षेत्र में भी आरक्षण की बात कर रहे हैं।'

मैंने कहा 'छोड़ो जस्सी जी आप क्यों चिंता करते हो? अपना चिंटू तो लाखों में एक है। सुना है इस बार भी क्लास में टॉप किया है।' बोले 'मुझे अपने चिंटू की चिंता नहीं है। मुझे तो चिंता उन लाखों चिंटुओं की है जो आरक्षण के दायरे में आने के बावजूद इसका फायदा नहीं उठा पाते चूंकि जो इसका पहले फायदा उठा चुके हैं वही बार-बार इससे लाभान्वित हो रहे हैं। मुझे चिंता उनकी है जो आरक्षण के दायरे में नहीं आते और संसाधनों के अभाव में जिनकी प्रतिभा निखरने से पहले ही दम तोड़ देती है। एक अन्याय को दूसरे अन्याय से ठीक नहीं किया जा सकता इसलिए वर्तमान आरक्षण व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है।'

मैंने पूछा 'ये सुधार करेगा कौन?' तो वे एक ही घूँट में अपना चाय का कप खत्म कर खड़े हुए और बोले 'मुझे इसका जवाब मिला तो आपको जरूर बताऊंगा। फिलहाल चलता हूँ, ऑफिस के लिए देर हो रही है।'