Wednesday, 12 August 2020

भाभीजी

-महेश देवनानी

मित्रों, भाभीजी को तो आप सब जानते ही हो। अरे नहीं, मैं सविता भाभी की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं तो बात कर रहा हूँ उस नव-अवतरित भाभीजी की जिसके चर्चे बीकानेर से लेकर दिल्ली की सत्ता के गलियारों तक में गूँज रहे हैं और जिसे कोरोना के विरुद्ध जंग में अर्जुन के तरकश का ब्रह्मास्त्र बताया जा रहा है।

नव-अवतरित इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि कुरुक्षेत्र के मैदान में जब पार्थ असमंजस की स्थिति में था तब भी बंसीवाले ने ये ज्ञान उसको नहीं दिया था (बहरहाल जन्माष्टमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं!) ये ज्ञान तो  बिलकुल ताज़ा ताज़ा है। विश्वास हो तो खुद सर्च करके देख लो। वैसे भी कब तक नेटफ्लिक्स और ऐमेजॉन प्राइम देख देख कर क्वारंटाइन के दिन काटोगे? कुछ तो ढंग का भी पढ़ लो। और हाँ अगर वक़्त मिले तो एक बार देश के संविधान पर भी नज़र मार लेना।

अब आप सभी तो बुद्धिजीवी लोग हो, आपको क्या बताना कि अर्जुन का लक्ष्य तो मछली की आँख की आइरिस की प्यूपिल था। उसे और कुछ दिख ही नहीं रहा था। ठीक उसी तरह आधुनिक युग के तीरंदाज़ भी अपनी नज़र सीधी लक्ष्य पे रखते हैं यानि कि 'मुनाफा' इनका वैज्ञानिकता, कानून, नैतिकता, पब्लिक सेफ्टी इत्यादि से कोई वास्ता नहीं है। ये बात और है कि कभी कभी निशाना चूक भी जाता है, पर तीरंदाज़ ध्यान रखते हैं कि प्रयास में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए। आखिर गीता का सार भी यही है कि हे तुच्छ मानव, तू केवल कर्म कर, फल तुझे अपने आप मिलेगा। ये 'फल' यानि कि 'मुनाफा' बैलेंसशीट में तो दिखता ही है, साथ-साथ में बैलेट-बॉक्स में भी दिखता है। इसलिए तीरंदाज़ प्रयास करते रहते है। आखिर गीता-महोत्सव पर जनता की गाढ़ी कमाई से लिए टैक्स को खर्च करने का कुछ तो फायदा होना चाहिए। 

कुछ दिनों पहले एक मासूम से दिखने वाले गुरूजी ने बोल दिया कि हमारी बनाई देसी दवाई खाओ और कोरोना से बचो। इन्होने तो देशप्रेम से अभिभूत होकर सम्पूर्ण मानव कल्याण का एक प्रयास मात्र किया था। ये बात और है कि सरकार ही इस आयुर्वेद के परमज्ञानी की बात नहीं मान रही है तो ये बेचारा क्या करे। बशीर साब ने कहा है ना 'कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी, यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता' इस धुरंधर ने तो गीतासार के अनुसार पूरा प्रयास किया था, आगे जैसी प्रभु की इच्छा। कहते हैं ऊपर वाले के घर देर है अंधेर नहीं। एक एक दिन इस परमज्ञानी को कर्मों का फल अवश्य मिलेगा। इसलिए, लगे रहो मुन्नाभाई। 

वैसे देखा जाए तो बाज़ारवाद को गाली देने वाले ही मुनाफे के लिए सारी नैतिकता को बत्ती लगाकर बीच बाज़ार में 'इम्युनिटी-बूस्टर' 'इम्युनिटी-बूस्टर' चिल्ला रहे हैं। कोई इम्युनिटी बढ़ाने वाला पापड़ बेच रहा है, तो कोई शहद, कोई चॉकलेट, तो कोई आइसक्रीम। और तो और अब तो इम्युनिटी बढ़ाने वाला 'छोला-कुलचा' भी बाजार में गया है, जबकि मैं अज्ञानी इतने सालों से रोज सुबह रात को भिगोये हुए बादाम खा रहा था। दुनिया भर के वैज्ञानिक भी बेकार ही एड्स की वैक्सीन बनाने में अपनी रातें काली कर रहे हैं, उन्हें ये सब छोड़कर 'छोले-कुलचे' पर रिसर्च करनी चाहिए।

वैसे पापड़ से इम्युनिटी बढ़ती है या नहीं इस पर आईसीएमआर को एक आरसीटी यानी 'रैंडमइज़ड कण्ट्रोल ट्रायल' सिंधियों और मारवाड़ियों पर करके देखना चाहिए। सिंधी तो पापड़ के बिना रह ही नहीं सकते। इनको ब्रेकफास्ट में, लंच में, डिनर में, चाय के साथ, दारू के साथ, और तो और नींद में खाने के सपने में भी पापड़ जरूर होना चाहिए। मारवाड़ी तो पापड़ की सब्जी तक बना लेते हैं। 

नब्बे की दहाई में एक फिल्म आयी थी 'आज का अर्जुन', बड़े मियां उसके नायक थे। उसमे एक गाना था :-

"गोरी है कलाइयाँ,

तू ला दे मुझे हरी हरी चूड़ियाँ,

अपना बना ले मोहे बालमा,

गोरी है कलाइयाँ" 

अगर 'आज का अर्जुन' फिल्म इस दौर में बनती तो ये गाना शायद कुछ यूँ लिखा जाता:-

"सूखी है कलाइयाँ,

तू ला दे मुझे पापड बड़ियाँ,

इम्युनिटी बढ़ा दे मोरी बालमा

सूखी हैं कलाइयाँ"

वैसे कुछ भी कहो, पापड़ की अपनी एक 'लिज़्ज़त' है। पापड़ देश को आत्मानिर्भर बनाने की दिशा में अहम् योगदान दे सकता है। इससे देश के लघु एवं गृह उद्योग को बढ़ावा मिलेगा। सरकारों को आदेश जारी कर नौकरशाहों की मीटिंगों में काजू बादाम पर पाबन्दी लगा कर पापड़ खाना अनिवार्य कर देना चाहिए। सालाना एसीआर में इस बात का जिक्र अवश्य होना चाहिए कि अधिकारी ने अपने विभाग में पापड़ की खपत बढ़ाने के क्या-क्या 'आउट ऑफ़ द बॉक्स' प्रयास किये। सबसे अधिक खपत वाले विभाग और अधिकारी को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित भी किया जाए। इसी प्रकार स्कूलों के मिड-डे मील और दफ्तरों, कॉलेजों की कैंटीनों में पापड़ परोसना अनिवार्य किया जाए। GeM पोर्टल पर पापड़ की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।

मित्रों, अंत में यही कहूँगा कि नए भारत में हमें आशावान होना चाहिए। इन निराशावादियों का तो काम ही है हर बात में मीन-मेख निकालना। जैसे कुछ लोग कह रहे थे कि सरकार इस अस्पताल में क्यों भर्ती हुए, उसमें क्यों नहीं हुए? तो मेरा तो ये कहना है कि ऐसे निकम्मों की बात पर ध्यान देने की बिलकुल भी ज़रुरत नहीं है (ठीक उसी तरह जैसे कुछ रोज़ पहले जयपुर वाले जादूगर साब कह रहे थे) आखिर जनता जनार्दन और सरकार में कुछ तो फर्क होना चाहिए? वो सरकार ही क्या जो जनता के स्तर पर जाये

खैर, आप अपनी इम्युनिटी पर ध्यान दीजिये और कोरोना से बचिए। ऊपरवाला सबको सलामत रखे, इस खाकसार की तो यही दुआ है। आमीन!!!