-महेश देवनानी
"वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन,
उसे इक ख़ूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा।"
साहिर ने शायद ही कभी सोचा होगा कि आशिक़ों की मजबूरियों को बयां करता यह शेर, कभी भारतीय राजनीति पर भी सटीक बैठेगा। वैसे ठीक भी है, अगर अंगूर खट्टे हों तो लड़की के बाप के साथ खड़े होकर बारात का स्वागत करने में ही भलाई है। तो हुज़ूर-ए-आला, अपने 'येड्डी सर' ने भी अटल-पथ पर चलते हुए प्रदेश हित में शहादत का केसरिया बाना धारण कर लिया है। उनके इस अदम्य साहस के लिए एक-आधा पदक तो बनता ही है।
वैसे कुछ दिलजलों का कहना है कि असली आशिक़ तो वो है जो कभी भी हार नहीं माने। माशूका भले ही जवाब न दे, पर दिन में 8-10 व्हाट्सएप्प शायरियाँ और गुड मॉर्निंग/इवनिंग/नाईट मैसेज तब तक भेजता रहे जब तक कि वो उसे ब्लॉक न कर दे। असली आशिक़ का मोटो होना चाहिए: "तू हाँ कर या ना कर, तू है मेरा कर्नाटक"। धिक्कार है ऐसे नाकाम आशिक़ पर जो अपनी महबूबा के लिए 8-10 घोड़ों का इंतज़ाम भी नहीं कर पाया। वो भी तब, जब देश के सबसे बड़े काऊबॉय (चरवाहा नहीं, गौ-पुत्र) का आशीर्वाद उसके साथ था। बताया ये भी जा रहा है कि गौ-पुत्र महबूबा से मिलने वादियों में निकल गए थे जहाँ नेटवर्क कमजोर था, इससे भी गुड़-गोबर हो गया।
देखा जाये तो 'येड्डी सर' के साथ बहुत नाइंसाफी हुई है। मोस्ट एलिजिबल दूल्हा सज-धज कर 104 बारातियों के साथ तोरण मारने को तलवार हाथ में लेकर तैयार था, पर एन-वक़्त पर दुल्हनिया दूसरे आशिक़ के साथ घोड़े पे भाग गई। घोर कलयुग है, घोर कलयुग। पैसे देकर भी चीज़ नहीं मिल रही। घोड़े बिकने को तैयार थे, खरीददार मुहमाँगा दाम देने को तैयार थे, जीएसटी और इन्कम-टैक्स का भी कोई पंगा नहीं, पर "हाए हाए ये ज़ालिम ज़माना"। सहगल से लेकर आज तक ये ज़माना दो मुहब्बत करने वालों के बीच दीवार बनकर खड़ा हो जाता है। ऊपर से ये "रिसोर्ट" नाम की बीमारी भारतीय राजनीति में घर कर गयी है। जानकार बताते हैं कि ये आधुनिक युग का अस्तबल है जहाँ घोड़ों को स्वर्ग सरीखी सुख-सुविधाएं प्रदान की जाती हैं ताकि 'चाणक्य के चेले' उन तक नहीं पहुँच पाएं।
इस पूरे प्रकरण में "रिसोर्ट", राजनीती-शास्त्र के चितेरों के लिए एक नई चुनौती के तौर पे उभरा है। सोशल मीडिया मैनेजमेंट के महारथी भी अभी तक इसका एन्टीडोट तैयार नहीं कर पाए हैं। यद्यपि सभी लोग इस बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते। 'खरीद-फरोख्त यूनिवर्सिटी' के एक सीनियर प्रोफेसर ने नागपुर से बताया कि असली चुनौती तो "न्याय का सर्वोच्च मंदिर" है जिसने महामहिम के 'मैरिज-प्लान' पर भांजी मार दी। लोकतंत्र के इस स्तम्भ को चाणक्य अभी तक 'मैनेज' करने में असफल रहा है।
वैसे जो शादी होने वाली है, उसके टिकाऊ होने पर भी संदेह हैं। बताया जा रहा है कि लड़के-लड़की की कुंडली ही नहीं मिलती। छत्तीस में से केवल दो गुण मिलते हैं:- 1) अवसरवादिता, 2) सत्ताभोग। उस पर लड़का डबल मांगलिक है - यानि दूसरी बार घोड़ी पर चढ़ रहा है। इसके अलावा 117 घोड़ों के 'खान-पान' की व्यवस्था करना भी एक टेढ़ी खीर है। अब देखना यह है कि जनपथ से बनके आया "डाइट-प्लान" कितने समय तक घोड़ों की सेहत का ख़्याल रख पाता है। इस बीच कुछ घोड़ों को अगर बेहतर डाइट ऑफर हुई, तो शादी टूट भी सकती है।
खैर, लोकतंत्र की किस्मत में गर ये खेल लिखा है, तो फिर लीजिये मज़ा। आप जनता-जनार्दन हैं, वोट का झुनझुना बजाइये। इससे ज्यादा आप और क्या उखाड़ लोगे?
इस बीच खबर है कि 'येड्डी सर' शादी में कैरिओके पे गाने की रिहर्सल कर रहे हैं:-"मुझसे कह दे मैं तेरा हाथ किसे पेश करूँ......रंग और नूर की बारात किसे पेश करूँ।"
शादी मुबारक!!!