Friday, 1 April 2016

पीजीआई के मरीज़ो ने बनाया विश्व कीर्तिमान

-महेश देवनानी 


कायाकल्प मे पूरे देश मे प्रथम स्थान प्राप्त करने के बाद अब पीजीआई ने एक विश्व कीर्तिमान भी स्थापित कर अपने आप को देश मे चिकित्सा के क्षेत्र मे सर्वोच्च स्थान पर पदस्थापित कर लिया है। विश्व कीर्तिमानों को सत्यापित करने वाली संस्था “गिनिपिग बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स” के अध्यक्ष श्री किम जोंग-उन ने उत्तरी कोरिया से फोन पर बताया कि पीजीआई के मरीजों ने सबसे लंबे समय तक कतारों में खड़े हो इंतज़ार करने का नया विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है। उनके अनुसार पीजीआई के मरीजों ने पिछले वित्त वर्ष (2015-16) में कुल 1 करोड़ घंटे लाइनों मे खड़े रहकर पुराने सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिये हैं।

अपनी इस उपलब्धि पर संस्थान ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर सभी कर्मचारियों और मरीजों को बधाई देते हुए इसे टीम वर्क का परिणाम बताया है। विज्ञप्ति मे निकटवर्ती प्रदेशों को भी साधुवाद का पात्र बताया गया है जिनकी अथक लगन एवं मेहनत के बिना यह संभव नहीं था। ज्ञात हो कि निकटवर्ती प्रदेशों ने बड़ी मेहनत से वर्षों तक अपने चिकित्सा संस्थानों को विकास से वंचित रख पीजीआई के इस कीर्तिमान मे अपना योगदान दिया है।

जब हमारे संवाददाता ने पीजीआई मे कुछ मरीज़ो से बात की तो वे भी यह समाचार सुन बड़े उत्साहित नज़र आए। संगरूर से आए जस्सी ने बताया कि वो पिछले कई वर्षों से पीजीआई की लाइनों मे खड़ा हो रहा है और इससे उसे अनेकों प्रकार के लाभ पहुंचे हैं – “पहला तो आप अपने समय का सदुपयोग नए दोस्त बनाने मे कर सकते हैं। जितने नए मित्र मैंने पीजीआई मे बनाएँ हैं उतने तो फ़ेसबुक, स्नैपचैट, इंस्टाग्राम, और व्हाट्सएप सब मिलाकर भी नहीं बना पाया। दूसरा ये कतारें सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाने एवं जातिवाद मिटाने में भी योगदान देती हैं। मरीज इन कतारों में जाति-धर्म, ऊँच-नीच, गरीब-अमीर का भेद मिटाकर समाजवाद की मिसाल कायम करते हैं।” पहाड़ों से आई कंगना देवी ने बताया कि वो पिछले 50 सालों से पीजीआई आ रही हैं और यहाँ की कतारों की तरक्की देख अतिप्रसन्न हैं। उन्हें इन कतारों से इतना लगाव है कि हर छोटी-बड़ी बीमारी के लिए सीधा पीजीआई का ही रूख करती हैं।

वरिष्ठ नागरिकों से जुड़े एक संगठन के सचिव श्री बेनीवाल ने यूं तो कीर्तिमान स्थापित होने पर खुशी जाहिर की पर साथ ही कहा कि इसमे पीजीआई स्टाफ से कोई सहयोग नहीं मिला है – “पीजीआई स्टाफ और उनके चहेते बिना इंतज़ार किए सीधे ही डॉक्टर को जाकर दिखा लेते हैं, इससे भी कीर्तिमान स्थापित होने मे देरी हुई है।” वरिष्ठ नागरिकों की उम्र को 70 वर्ष से घटा कर 60 वर्ष करने को भी उन्होने गलत बताया – “अब 60 से 70 वर्ष की उम्र वालों का काम भी जल्दी हो जाता है, जबकि पहले उन्हे लंबा इंतज़ार करने का सौभाग्य मिलता था।” कुछ लोगों का कहना था कि पीजीआई द्वारा ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू करना भी इस कीर्तिमान के मार्ग मे रुकावट लाया परंतु प्रबुद्ध मरीजों ने इसका इस्तेमाल नहीं कर देशभक्ति का परिचय दिया है। ये लोग पीजीआई में शुरू होने वाले स्मार्ट कार्ड का भी विरोध कर रहे हैं।

पीजीआई मे चर्चा है कि इस उपलब्धि को हासिल करना जितना कठिन था इसे बनाये रखना उससे भी कठिन है। इसे देखते हुए कई सुझाव सुनने मे आ रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि सालाना होने वाले रिसर्च डे पर लगने वाले इनोवेशन बाज़ार मे इस विषय पर एक विशेष पुरस्कार की घोषणा की जाए। सूत्रों के अनुसार पीजीआई “पेशेंट वेटिंग टाइम ग्रांटकी भी घोषणा कर सकता है ताकि इस क्षेत्र मे नवीन शोध को बढ़ावा मिल सके। खबर है कि फ़ैकल्टि एसोसिएशन जो हालिया दिनो मे चुनावों को लंबित रखने से चर्चा में है भी “लर्निंग रिसौर्स अलाऊन्स” की तर्ज़ पर “पेशेंट वेटिंग अलाऊन्सकी मांग कर सकती है। अस्पताल प्रशासन से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आगामी वित्त-वर्ष में संस्थान कुर्सियों की खरीद पर पाबंदी लगाने पर विचार कर सकता है। इसके अतिरिक्त दानदाताओं से भी अपील की जा सकती है कि दान मे कुर्सी न दे। ऐसा माना जा रहा है कि इन सभी उपायों से विश्व कीर्तिमान को अगले वर्ष भी बनाए रखने मे मदद मिलेगी।

अब देखना यह है कि ये सभी उपाय आने वाले दिनों मे कितने कारगर साबित होते हैं? फिलहाल तो संस्थान अपनी इस उपलब्धि पर गौरवान्वित महसूस कर रहा है।

विशेष आभार: इस लेख को लिखने की प्रेरणा के लिए मैं इस अन्य लेख का आभारी हूँ: http://www.chevening.org/scholars/news/2016/chevening-scholars-set-world-record-for-queueing